मैं क्या हूँ ?
मैं क्या हूँ, मैं क्या हूँ ?
भगवान की एक रचना,
या भगवान की ग़लती!
मैं इस दुनिया के लिए क्या हूँ ?
एक उपयोगी,
या एक बेकार इन्सान !
मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ ?
एक दोस्त, एक क़रीबी दोस्त,
या कुछ भी नहीं !
इन प्रश्नों के उत्तर मुझे कहाँ से मिलेंगे ?
भगवान, माता, पिता ?
भगवान से बात नहीं कर सकती हूँ,
और माता-पिता को क्या पता!
तुझे पता है क्या ?
होने दो, मैं उनकी रचना नहीं हूँ ,
लेकिन मैं ज़रूर,
कहलाऊँगी उनकी रचना |
होने दो, मैं इस दुनिया के लिए बेकार हूँ,
लेकिन मैं ज़रूर,
उपयोगी बनूँगी |
होने दो, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं हूँ,
लेकिन मैं ज़रूर,
तेरी ज़िन्दगी में अपने निशान छोडूँगी |
होने दो, तुम में से कोई मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकते हो,
लेकिन मैं ज़रूर,
इनके उत्तर दूँगी
काशवी (सात ‘स’)---------