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तन से बढ़कर मन का सौन्दर्य है
Aashrita- 3C

महाकाव्य “मेघदूत” के रचयिता कालिदास “मूर्ख” नाम से प्रसिद्ध है ,जिनका विवाह सुन्दर व महान गुणवती विधोतमा से हुआ था उन महाकवि से राजा विक्रमादित्य ने एक दिन अपने दरबार में पूछा “क्या कारण है, आपका शरीर मन और बुद्दी के अनुरूप नही नही है ?” इसके उत्तर में कलिदास ने अगले दिन दरबार में सेवक से दो घड़ों में पिने का पानी लेन को कहा | वह जल से भरा एक स्वर्ण निर्मित घड़ा और दूसरा मिटटी का घड़ा ले आया |

   अब महाकवि ने राजा से विनयपूर्वक पूछा “महाराज ! आप कौन से घड़े का जल पीना पसंद करेंगे ?” विक्रमादित्य ने कहा, “ कवि महोदय, यह भी कोई पूछने की बात है ? इस ज्येष्ठ मास की तपन में सबको मिटटी के घड़े का जल भाता है |” कालिदास मुस्कुराकर बोले “तब तो महाराज आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं ही दे दिया |” राजा समझ गए कि जिस प्रकार जल की शीतलता बर्तन की सुन्दरता पर निर्भर नही करती,उसी प्रकार मन बुद्दी का सौन्दर्य तन से नही आँका जाता |