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रचंनात्मक लेखन
-महती, कक्षा ९ अ

राजू कक्षा ८ का विद्यार्थी था।  उसके चार भाई - बहन थे।  उसके पिता एक छोटे से स्कूल में अध्यापक थे।  बहुत अधिक आय न होने पर भी घर आसानी से चल जाता था।  राजू का स्कूल घर से दूर था।  राजू के स्कूल में शिक्षक दिवस के लिये आयोजन हो रहे थे।  स्कूल में कहा गया कि हर बच्चे को अध्यापक के लिए एक तोफा लाना पड़ेगा।  राजू के माता -पिता यह सुनकर बहुत परेशान हुए थे--- जितने पैसे थे उससे तो घर का खर्च आसानी से चल जाता, लेकिन इस तोफे के लिए और पैसे कहाँ से लाए? शिक्षक दिवस के लिए सिर्फ दो दिन बचे थे और राजू के पास ना तो तोफा था और ना ही तोफे के लिए पैसे।  

एक दिन, जब स्कूल से घर लौट आ रहा था, उसे सड़क पर एक छोटा-सा बस्ता दिखाई दी।  जब पास आकर देखा तो उसमें सोने के सिक्के! राजू को डर था की उसे कोई देख न ले?

बिना सोचे जल्दी से बस्ते को लेकर घर की और भागने लगा।  जब घर पहुँचा, तब उसे एहसास हुआ की उसने चोरी की है।  बस्ता राजू का नहीं था।  शायद अब भी बाहर कोई उसे ढूंढ रहा हो।  राजू ने तय किया कि वह कल जाकर उसे लौटा देगा।  लेकिन उसके तोफे ? उन्हें खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आते? और कल ही तौफ़ा देना था।  रात भर राजू को नींद नहीं आई, बस सोचता रहा।  शिक्षक दिवस आ ही गया था, और राजू के पास कोई योजना नहीं थी।  फिर भी वह स्कूल गया, सोचते हुए कि वह सच ही बता देगा।  

जब अध्यापक कक्षा में प्रवेश किया, सभी बहुत से अच्छे-अच्छे, रंग-बिरंगी तोफे लाये, लेकिन राजू के पास कुछ नहीं था।  अध्यापक ने उसे गुस्से से पूछा की उसका तौफ़ा कहा है, तो राजू ने धीरे से बस्ता निकाला।  "मैंने सोचा के यह सोने के सिक्के से में आपके लिए कुछ लाऊ लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता था।  यह मेरे पैसे नहीं", राजू ने कहा।  अचानक अध्यापक हँसने लगे, उसने चिल्लाया, "अरे, यह बस्ता मेरी है, मैने उसे खो गया था।  धन्यवाद बेटे, अगर तुम ईमानदार नहीं हित, तो मुझे यह कभी नहीं मिलता !"
राजू ने पुछा, "लेकिन तोफ?" तो अधयापक ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे राजू, तुम्हारी \ सच्चाई और ईमानदारी से बेहतर और कौन सा तौफा हो सकता है?"
हमें हमेशा सच्चा और ईमानदार रहना चाहिए।  

मैं महती हूँ और मैं कक्षा ९ में पढ़ती हूँ। मुझे पुस्तक पढना और बास्केटबॉल खेलना पसंद हैं।